भारत ने पहली बार स्वदेशी साधक (indigenous seeker) के साथ अपनी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण किया। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने परीक्षण सफल होने के बाद खुद इसकी जानकारी दी और वैज्ञानिकों को बधाई दी। बता दें कि ब्रह्मोस का परीक्षण लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई के साथ भी किया जा चुका है।
परीक्षण के बाद क्या कहा सीतारमण ने?
परीक्षण के बाद सीतारमण ने ‘डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन’ यानी DRDO के वैज्ञानिकों को बधाई दी। उन्होंने कहा- सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का फ्लाइट टेस्ट सुबह 8.42 मिनट पर किया गया और ये कामयाब रहा। ये टेस्ट राजस्थान के पोकरण में किया गया। मिसाइल ने लक्ष्य पर सटीक निशाना साधा। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूत करेगा।
उन्होंने कहा, “भारत निर्मित सीकर के साथ सटीक प्रहार करने वाले हथियार ने अपने निर्दिष्ट प्रक्षेप पथ पर उड़ान भरा और पिन प्वाइंट एक्यूरेसी के साथ लक्ष्य को निशाना बनाया।”
सीकर मिसाइल को उसके लक्ष्य को भेदने के लिए राह बताता है। ब्रह्मोस एएलसीएम (एयर लांच क्रूज मिसाइल) का वजन 2.5 टन है। यह मिसाइल के जमीन व समुद्री संस्करणों से हल्का है, जिनका वजन करीब 3 टन है, लेकिन यह भारत के सू-30 विमान में तैनात किए जाने वाला सबसे भारी हथियार है।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा हथियार की ढुलाई के लिए विमान में परिवर्तन किया गया। ह्मोस भारत के डीआरडीओ व रूस के एनपीओ मशिनोस्टोयेनिया के बीच संयुक्त उद्यम है।
इस मिसाइल को 500 से 14,000 मीटर (1640 से 46,000 फीट) ऊंचाई से छोड़ा जा सकता है। इसे छोड़ने के बाद मिसाइल स्वतंत्र रूप से 100 से 150 मीटर तक गिरती है और फिर क्रूज फेज में 14000 मीटर और अंत में अंतिम चरण में 15 मीटर जाती है।
टेस्ट के दौरान सटीक हमला करने में माहिर इस हथियार ने पहले तय टार्गेट पर पिन पॉइंट निशाना लगाया। इससे पहले इस मिसाइल को पहली बार पिछले साल नवंबर में फायटर जेट सुखोई-30 एमकेआई से दागा गया था। भारत सरकार इस मिसाइल को सुखोई में लगाने के लिए काम शुरू कर चुकी है और अगले तीन सालों में कुल 40 सुखोई विमान ब्रह्मोस मिसाइल से लैस हो जाएंगे।
बता दें कि इससे पहले सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का आखिरी परीक्षण नवंबर 2017 में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू, सुखोई -30 एमकेआई के साथ किया गया था। माना जा रहा है कि सुखोई में ब्रह्मोस फिट होने से क्षेत्र में एयरफोर्स की ताकत काफी बढ़ जाएगी। गौरतलब है कि 12 फरवरी 1998 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल टेक्नॉलजिस्ट डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम और रूस के प्रथम डेप्युटी डिफेंस मिनिस्टर एन.वी. मिखाइलॉव ने एक इंटर-गवर्मेन्टल अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया था। इसके बाद ही ब्रह्मोस बनाने का रास्ता साफ हुआ। इसे भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओएम द्वारा संयुक्त रूप से बनाया गया था।
किसने बनाया?
- ब्रह्मोस को डीआरडीओ और रूस की कंपनी एनपीओ ने मिलकर तैयार किया है।
- एक और अहम बात है कि इसे सुखोई-30 के लिहाज से ही तैयार किया गया। इसकी वजह भी खास है। दरअसल, सुखोई 30 एल्यूमिनियम की जगह टाईटेनियम से तैयार किया गया है। यह बेहद ऊंचे पहाड़ों पर भी बिना एयर टर्बुलेंस के आसानी से और ज्यादा तेजी से उड़ान भरता है।
- सुखोई ऑटो मोड पर सेट करने के बाद भी उड़ान भर सकता है। यह जितना दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में मारक है, उतना ही मैदानी इलाकों में भी।
महत्व
इस मिसाइल को सुखोई से 500 से 14 हजार मीटर की ऊंचाई से छोड़ा जा सकता है। रिलीज के बाद ब्रह्मोस 100 से 150 मीटर तक नीचे की और ऑटोमोड पर गिरती है। इसके बाद यह तय रूट पर 14 हजार मीटर तक बिल्कुल पिन प्वॉइंट पर टारगेट को तबाह कर देती है।
और भी पढ़े:-