इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-मद्रास (IIT-M) के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में इंटरस्टेलर की स्थितियों का अनुकरण करके अंतरिक्ष ईंधन को फिर से बनाया है। यह जीवाश्म ईंधन के लिए स्वच्छ और टिकाऊ विकल्पों की खोज में भारत के लिए एक बड़ी सफलता है।
ग्रीनहाउस गैसों और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए इस खोज में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अगली पीढ़ी के ऊर्जा स्रोत में बदलने की क्षमता है। इस संबंध में IIT-M का शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) के जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
अंतरिक्ष ईंधन का अध्ययन
- IIT-M की टीम अल्ट्रा-हाई वैक्यूम (वायुमंडलीय दबाव से 1000 बिलियन गुना नीचे) और -263oC के तापमान पर मीथेन युक्त क्लैथ्रेट हाइड्रेट यानी गहरे स्थान पर स्थितियां बनाने में सक्षम थी।
- बेहद कम दबाव और अत्यधिक ठंडे तापमान पर हाइड्रेट्स की यह खोज बेहद अप्रत्याशित है।
- टीम ने भविष्यवाणी की है कि अंतरिक्ष में मीथेन और अमोनिया जैसे अणु हमारे लिए जाने जाने वाले की तुलना में पूरी तरह से अलग रूप में मौजूद हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन से निपटना
- क्लैट्रेट हाइड्रेट क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ होते हैं, जिनमें मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे गैस होते हैं जो पानी के अणुओं के अच्छी तरह से परिभाषित पिंजरों में फंस जाते हैं।
- इन हाइड्रेट्स, विशेष रूप से मीथेन, को भविष्य का ईंधन माना जाता है।
- शोधकर्ताओं ने तब कार्बन-डाय-ऑक्साइड और इसी तरह के हाइड्रेट्स के साथ प्रयोगों को दोहराया था।
- यह ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में एक सफलता हो सकती है।
- अब कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से फँसाया जा सकता है और कार्बन डाइऑक्साइड गैस को समुद्र तल के नीचे ठोस हाइड्रेट्स के रूप में अनुक्रमित किया जा सकता है।